लेखक: The Mediawala Express टीम | नई दिल्ली | 24 अप्रैल 2025

भारत सरकार ने एक ऐतिहासिक और कड़े कदम के तहत इंदुस जल संधि 1960 को तत्काल प्रभाव से स्थगित करने की घोषणा की है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब भारत-पाकिस्तान संबंधों में पहले से ही तनाव बना हुआ है, विशेषकर जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को लेकर।

क्या है इंदुस जल संधि?

1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित इंदुस जल संधि को पानी के बंटवारे की सबसे सफल अंतरराष्ट्रीय संधियों में एक माना जाता रहा है। इसके तहत सतलुज, ब्यास और रावी नदियों का नियंत्रण भारत को मिला, जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का बहाव पाकिस्तान को दिया गया।

लेकिन बदलते समय, जनसंख्या, ऊर्जा आवश्यकताओं और भू-राजनीतिक परिस्थितियों ने इस संधि की प्रासंगिकता और निष्पक्षता पर कई बार सवाल उठाए हैं।

भारत सरकार की आपत्तियां:

भारतीय जल शक्ति मंत्रालय की सचिव देबाश्री मुखर्जी द्वारा पाकिस्तान के जल संसाधन सचिव सैयद अली मुर्तज़ा को भेजे गए आधिकारिक पत्र में भारत ने निम्नलिखित मुद्दों को उठाया है:

1. 

बदलती जनसंख्या और ऊर्जा ज़रूरतें:

भारत ने तर्क दिया कि 1960 के मुकाबले अब देश की जनसंख्या कई गुना बढ़ चुकी है। स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्य को पूरा करने के लिए जल संसाधनों का पुनः मूल्यांकन आवश्यक है। जलविद्युत परियोजनाएं भारत के ऊर्जा भविष्य के लिए अहम हैं।

2. 

पाकिस्तान द्वारा जारी आतंकवाद:

भारत ने यह भी कहा कि संधि की शर्तों को निभाने के लिए “अच्छी नीयत” ज़रूरी है, लेकिन पाकिस्तान द्वारा लगातार सीमा पार आतंकवाद से संधि की भावना का उल्लंघन हुआ है, विशेषकर जम्मू-कश्मीर में।

3. 

संधि वार्ता पर पाकिस्तान की चुप्पी:

भारत का कहना है कि उसने बार-बार पाकिस्तान से पुनः वार्ता की कोशिश की, लेकिन कोई रचनात्मक उत्तर नहीं मिला। पाकिस्तान की यह चुप्पी संधि के अनुच्छेदों का उल्लंघन है।

भारत का निर्णय:

भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि इंदुस जल संधि को तत्काल प्रभाव से “अबेयन्स” (स्थगन) में रखा जा रहा है। इसका अर्थ यह है कि भारत अब जल वितरण के लिए संधि की पुरानी बाध्यताओं से मुक्त रहेगा।

राजनीतिक और रणनीतिक मायने:

1. पाकिस्तान पर दबाव की रणनीति:

यह कदम भारत की ओर से कूटनीतिक दबाव का एक माध्यम भी माना जा रहा है। पाकिस्तान पहले से आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य मोर्चों पर दबाव में है। अब जल जैसे जीवनरेखा के मुद्दे पर भारत की रणनीति उसे वार्ता की मेज पर ला सकती है।

2. घरेलू जल जरूरतों पर फोकस:

भारत अपने उत्तर और उत्तर-पश्चिमी राज्यों — जैसे पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख — में जल संकट और कृषि से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहा है। संधि स्थगन इन क्षेत्रों के लिए नीतिगत बदलाव का रास्ता खोल सकता है।

3. अंतरराष्ट्रीय संदेश:

यह निर्णय दुनिया को यह संदेश भी देता है कि भारत अब अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों पर निर्णायक और आत्मनिर्भर रुख अपना रहा है।

पाकिस्तान की संभावित प्रतिक्रिया:

ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान ने हर बार संधि में भारत के जल परियोजनाओं को लेकर आपत्ति जताई है। अब जब भारत ने संधि ही स्थगित कर दी है, तो पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों — जैसे संयुक्त राष्ट्र या विश्व बैंक — का सहारा ले सकता है।

आगे क्या?

  • भारत नए जल प्रबंधन ढांचे की ओर बढ़ सकता है।
  • हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स पर तेजी से काम संभव है।
  • दोनों देशों के बीच वार्ता या तनाव, दोनों की संभावना खुली है।

निष्कर्ष:

भारत द्वारा इंदुस जल संधि को स्थगित करना सिर्फ एक जल नीति का परिवर्तन नहीं, बल्कि एक सशक्त राजनीतिक संकेत है। यह बताता है कि नई दिल्ली अब अपने हितों की रक्षा के लिए निर्णायक और आत्मविश्वासी रुख अपनाने को तैयार है — चाहे इसके लिए दशकों पुरानी संधियों को भी पुनः परिभाषित क्यों न करना पड़े।

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