जमशेदपुर

पूर्वी सिंहभूम जिला प्रशासन की लापरवाही एक मामूली से दिखने वाले बिल को भारी आर्थिक संकट में बदल चुकी है। प्रशासन ने सालों पहले एक प्रिटिंग प्रेस संचालिका का 7.13 लाख रुपये का भुगतान रोका था, लेकिन अब यह मामला करोड़ों में पहुंच गया है। अदालत में लगातार पैरवी की अनदेखी के चलते अब जिला प्रशासन को कम से कम 2 करोड़ रुपये चुकाने पड़ सकते हैं।

1993 से शुरू हुआ विवाद

इस पूरे मामले की शुरुआत 1993 में हुई, जब चाईबासा की प्रिटिंग प्रेस संचालिका पुष्पलता पसारी को एक टेंडर मिला था। यह टेंडर सरकारी फॉर्म छपाई का था, जिसकी कुल राशि 9 लाख रुपये थी। हालांकि, छपाई की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाते हुए उस समय के डीडीसी ने सिर्फ 2 लाख रुपये भुगतान किए और शेष 7.13 लाख रुपये काट लिए गए।

अदालती लड़ाई में प्रशासन की लापरवाही

पुष्पलता पसारी ने इसके खिलाफ जमशेदपुर कोर्ट में मुकदमा दायर किया, जिसमें कोर्ट ने प्रशासन की ओर से सही तरीके से पैरवी न होने के चलते फैसला पसारी के पक्ष में सुना दिया। इसके बाद उन्होंने मनी सूट (Money Suit) दाखिल किया, जिसमें भी जिला प्रशासन हार गया।

2012 में आया भारी भरकम फैसला

कोर्ट ने 2012 में 26.3 प्रतिशत सालाना ब्याज की दर से 3 करोड़ 18 लाख 64 हजार रुपये की डिक्री पसारी के पक्ष में जारी कर दी। यह डिक्री अब तक लागू नहीं हो पाई है, और बीते 13 वर्षों में यह रकम और भी बढ़ गई है।

कई बार सील हुआ डीआरडीए कार्यालय

पसारी की ओर से वसूली के लिए डीआरडीए कार्यालय को दो बार सील भी किया गया है। इससे कार्यालय का एक पूरा तल फिलहाल बंद पड़ा है। 2018 में तत्कालीन डीआरडीए निदेशक उमा महतो ने हाईकोर्ट में कैविएट दायर की, लेकिन आगे कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया। 2024 में निदेशक अजय कुमार ने हाईकोर्ट में रिट और इंटरलोकेटरी एप्लीकेशन (IA) दायर की, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।

सरकारी अधिवक्ता ने दिया इस्तीफा

इस मामले में जो सरकारी अधिवक्ता नियुक्त किए गए थे, उन्होंने भी बाद में इस्तीफा दे दिया, जिससे प्रशासन की कानूनी स्थिति और भी कमजोर हो गई। अधिकारियों में यह आशंका भी है कि यदि उन्होंने भुगतान किया और बाद में मामला जांच में आया तो वे खुद फंस सकते हैं। इसी भय के कारण भुगतान से बचा जा रहा है, लेकिन इससे मामला उलझता ही जा रहा है।

अब क्या है स्थिति?

मामला फिलहाल पूर्वी सिंहभूम जिला प्रशासन के लिए गंभीर वित्तीय संकट बन चुका है। यदि जल्द कोई समाधान नहीं निकाला गया तो ब्याज सहित यह राशि 2 करोड़ से काफी अधिक हो सकती है, और जिले की प्रशासनिक साख के लिए यह एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आ सकती है।

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