कई सहस्र वर्ष पुराना माना जाता है।[1] 65,000 साल पहले, पहले आधुनिक मनुष्य, या होमो सेपियन्स, अफ्रीका से भारतीय उपमहाद्वीप में पहुँचे थे, जहाँ वे पहले विकसित हुए थे।[2][3][4] सबसे पुराना ज्ञात आधुनिक मानव आज से लगभग 30,000 वर्ष पहले दक्षिण एशिया में रहता है।[5] 6500 ईसा पूर्व के बाद, खाद्य फसलों और जानवरों के वर्चस्व के लिए सबूत, स्थायी संरचनाओं का निर्माण और कृषि अधिशेष का भण्डारण मेहरगढ़ और अब बलूचिस्तान के अन्य स्थलों में दिखाई दिया।[6] ये धीरे-धीरे सिंधु घाटी सभ्यता में विकसित हुए, दक्षिण एशिया में पहली शहरी संस्कृति, जो अब पाकिस्तान और पश्चिमी भारत में 2500-1900 ई.पू. के दौरान पनपी। मेहरगढ़ पुरातत्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है जहां नवपाषाण युग (7000 ईसा-पूर्व से 2500 ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरम्भ काल लगभग 3300 ईसापूर्व से माना जाता है,[7] प्राचीन मिस्र और सुमेर सभ्यता के साथ विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में से एक हैं। इस सभ्यता की लिपि अब तक सफलता पूर्वक पढ़ी नहीं जा सकी है। सिन्धु घाटी सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी। पुरातत्त्व प्रमाणों के आधार पर 1900 ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अकस्मात पतन हो गया।19वीं शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के प्रचलित दृष्टिकोणों के अनुसार आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर 2000 ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा और पहले पंजाब में बस गया और यहीं ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई। आर्यों द्वारा उत्तर तथा मध्य भारत में एक विकसित सभ्यता का निर्माण किया गया, जिसे वैदिक सभ्यता भी कहते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे प्रारम्भिक सभ्यता है जिसका सम्बन्ध आर्यों के आगमन से है। इसका नामकरण आर्यों के प्रारम्भिक साहित्य वेदों के नाम पर किया गया है। आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म “वैदिक धर्म” या “सनातन धर्म” के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा इस धर्म का नाम हिन्दू पड़ा।

वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब (भारत) और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित हुई। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल 2000 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व के बीच में मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे हैं कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल 3000 ईसा पूर्व रहा होगा, क्योंकि आर्यों के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डी एन ए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है। हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की 2600 बस्तियों में से वर्तमान पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र 265 बस्तियाँ थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियाँ सरस्वती नदी के तट पर मिलती हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से 4000 साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी थी। आर्य लोग खानाबदोश गड़ेरियों की भांति अपने जंगली परिवारों और पशुओं को लिए इधर से उधर भटकते रहते थे। इन लोगों ने पत्थर के नुकीले हथियारों से काम लेना सीखा। मनुष्यों की इस सभ्यता को वे ‘यूलिथ- सभ्यता’ कहते हैं। इस सभ्यता में कुछ सुधार हुआ तो फिर ‘चिलियन’ सभ्यता आई। इन हथियार औजारों की सभ्यता के समय का मनुष्य नर वानर के रूप में थे। उनमें वास्तविक मनुष्यत्व का बीजारोपण नहीं हुआ था। ” मुस्टेरियन ” सभ्यता के पश्चात ” रेनडियन ” सभ्यता का प्रादुर्भाव हुआ। इस समय लोगों में मानवोचित बुद्धि का विकास होने लगा था। फिर इसके बाद वास्तविक सभ्यताएं आई जिसमें पहली सभ्यता नव पाषाण कालीन कही जाती है। इस सभ्यता के युग का मनुष्य अपने जैसा ही वास्तविक मनुष्य था। अतः यूथिल सम्यता से लेकर नव पाषाण सभ्यता तक का काल पाषाण- युग कहलाता है। पाषाण युग के बाद मानव जाति में धातु युग का प्रादुर्भाव हुआ। धातु युग का प्रारम्भ ताम्रयुग से होता है। नव पाषाण युग के अंत तक मनुष्य की बुद्धि बहुत कुछ विकसित हो गई थी। इसी समय कृषि का आविष्कार हुआ। कृषि ही सम्यता की माता थी। आर्य ही संसार में सबसे प्रथम कृषक थे। कृषि के उपयोगी स्थानों की खोज में आर्य पंजाब की भूमि में आए और इसी का नाम सप्तसिन्धु प्रदेश रखा। आर्य लोग सम्पूर्ण सप्तसिन्धु प्रदेश में फैल गए, परन्तु उनकी सभ्यता का केन्द्र सरस्वती तट था। सरस्वती नदी तट पर ही आर्यों ने ताम्रयुग की स्थापना की। यहाँ उन्हें ताम्बा मिला और वे अपने पत्थर के हथियारों को छोड़कर ताम्बे के हथियारों को काम में लेने लगे। इस ताम्रयुग के चिन्ह अन्वेषकों को ” चान्हू डेरों ” तथा “विजनौत ” नामक स्थानों में खुदाई में मिले हैं। ये स्थान सरस्वती नदी प्रवाह के सूखे हुए मार्ग पर ही है। मैसापोटामिया तथा इलाम में यही सभ्यता ” प्रोटो इलामाइट ” सभ्यता कहलाती है। सुमेरू जाति प्रोटाइलामाइट जाति के बाद मैसोपोटामिया में जाकर बसी है। सुमेरू सभ्यता के बाद मिस्र की सभ्यता का उदय हुआ। प्रसिद्ध अमेरिकन पुरातत्वविद् डा० डी० टेरा ने सिन्धु प्रदेश को पत्थर और धातुयुग में मिलानेवाला कहते हैं। ताम्र सभ्यता के बाद काँसे की सभ्यता आई। काँसे की सभ्यता संभवतः सुमेरियन लोगों की थी। मैसोपोटामिया के उर- फरा- किश तथा इलाम के सुसा और तपा- मुस्यान आदि जगहों में उन्हें खुदाई में काँसे की सभ्यता के नीचे ताम्र सभ्यता के अवशेष मिले हैं। मैसोपोटामिया में जहाँ जहां इस प्रोटो इलामाइट कही जाने वाली ताम्र सभ्यता के चिन्ह मिले हैं, उसके और सुमेरू जाति की कांसे की सभ्यता के स्तरो के बीच में किसी बहुत बड़ी बाढ़ के पानी द्वारा जमी हुई चिकनी मिट्टी का उसे चार फुट मोटा स्तर प्राप्त हुआ है। यूरोपिय पुरातत्ववेत्ताओं का यह मत है कि मिट्टी का यह स्तर उस बड़ी बाढ़ द्वारा बना था, जिसको प्राचीन ग्रन्थों में नूह का प्रलय कहते हैं। ताम्रयुग की प्रोटोइलामाइट सभ्यता के अवशेष इस प्रलय के स्तर के नीचे प्राप्त हुए हैं। इसका यह अर्थ लगाया गया कि इस प्रलय के प्रथम में ही प्रोटो इलामाइट सभ्यता का अस्तित्व था। इस सभ्यता के अवशेषों के नीचे कुछ स्थानों में निम्न श्रेणी की पाषाण सभ्यता के चिन्ह प्राप्त हुए हैं।

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