झारखंड के जमशेदपुर ज़िले में स्थित डुमरिया प्रखंड के 11 गांवों के 118 परिवार इन दिनों ग्राम प्रधानों द्वारा किए गए सामाजिक बहिष्कार का दंश झेल रहे हैं। वर्षों से चली आ रही इस सामाजिक पीड़ा ने अब गंभीर मोड़ ले लिया है। बहिष्कृत ग्रामीणों ने धर्म परिवर्तन करने की चेतावनी देते हुए जिला प्रशासन से न्याय की गुहार लगाई है।
गुरुवार को बड़ी संख्या में पीड़ित ग्रामीण, जिनमें महिलाएं भी शामिल थीं, उपायुक्त कार्यालय पहुंचे और एक ज्ञापन सौंपा। उन्होंने कहा कि यदि जल्द न्याय नहीं मिला तो वे 15-20 दिनों में धर्म परिवर्तन कर लेंगे, और इसकी पूरी जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होगी।
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क्या है पूरा मामला?
डुमरिया प्रखंड के चाकड़ी, मरांगसंघा, बादलगोड़ा, कासालीडीह, बोमरो, कोलाबरिया, मेरालडीह, कुदुरसाई और छोटा अस्ती सहित 11 गांवों के 118 परिवारों को उनके-अपने ग्राम प्रधानों ने विभिन्न कारणों से बहिष्कृत कर दिया है।
छोटा अस्ती गांव के सोनाराम हेम्ब्रम ने बताया कि उनके गांव के 12 परिवारों को पूर्णिमा के दिन सोहराय पर्व मनाने के कारण बहिष्कृत कर दिया गया।
वहीं भागवत सोरेन और कुदाय माझी जैसे अन्य ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें न केवल सामाजिक बल्कि धार्मिक बहिष्कार का भी सामना करना पड़ रहा है — उन्हें जाहेरथान (परंपरागत पूजा स्थल) में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाती।
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कठोर सामाजिक नियंत्रण और मानसिक उत्पीड़न
ग्रामीणों का आरोप है कि गांवों में हुक्का-पानी बंद कर दिया गया है। इतना ही नहीं, यदि कोई उनसे बात करता है तो उस परिवार को भी ग्राम प्रधान के आदेश से बहिष्कृत कर दिया जाता है। इससे बच्चों की शिक्षा, विवाह, स्वास्थ्य सेवाएं और सामाजिक जीवन गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
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न्याय की अपील के बावजूद प्रशासन मौन
ग्रामीणों का कहना है कि वे पिछले एक वर्ष से बीडीओ, एसडीओ और सांसद तक से गुहार लगा चुके हैं। यहां तक कि सांसद की सिफारिश लेकर उपायुक्त से मिलने पहुंचे, लेकिन उपायुक्त की अनुपस्थिति में जिला योजना पदाधिकारी मृत्युंजय कुमार को ज्ञापन सौंपा गया। अब उनका कहना है कि न्याय नहीं मिलने पर वे धर्म परिवर्तन कर लेंगे।
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एकता की मांग: पूरे प्रखंड में एक ही प्रधान हो
ग्रामीणों की मांग है कि प्रखंड स्तर पर एक ही प्रधान की व्यवस्था की जाए, ताकि गांवों में मनमानी रोककर सामाजिक एकता सुनिश्चित की जा सके। उनका कहना है कि जब तक अलग-अलग ग्राम प्रधानों की निजी सत्ता चलती रहेगी, सामाजिक न्याय संभव नहीं होगा।
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धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक समानता पर बड़ा सवाल
झारखंड के इस मामले ने एक बार फिर आदिवासी समाज में सामाजिक न्याय, धार्मिक स्वतंत्रता और प्रशासनिक जवाबदेही को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि समय रहते सरकार और प्रशासन ने हस्तक्षेप नहीं किया, तो यह मामला केवल धर्म परिवर्तन तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे राज्य में सामाजिक अशांति का कारण बन सकता है।
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निष्कर्ष:
झारखंड के ये 118 परिवार केवल सामाजिक न्याय की मांग कर रहे हैं। अगर प्रशासन निष्क्रिय रहता है, तो यह केवल धर्म परिवर्तन की चेतावनी नहीं, बल्कि व्यवस्था पर अविश्वास की चेतावनी है। ऐसे में ज़रूरत है तुरंत कार्रवाई की, ताकि देश के सबसे संवेदनशील सामाजिक वर्गों में विश्वास बहाल किया जा सके।