झारखंड के सरकारी स्कूलों में मिड डे मील योजना को लेकर गंभीर संकट खड़ा हो गया है। शिक्षा सत्र को आरंभ हुए 40 दिन से अधिक बीत चुके हैं, लेकिन अब तक कुकिंग कॉस्ट की राशि विद्यालयों तक नहीं पहुंच सकी है। हैरानी की बात यह है कि एक ओर सरकार ने कुकिंग कॉस्ट में बढ़ोतरी की घोषणा कर दी है, वहीं दूसरी ओर न तो पहले की राशि जारी हुई है और न ही संशोधित दरों के तहत भुगतान हुआ है।

इस वजह से स्कूल प्रशासन और शिक्षक वर्ग बेहद परेशान है। अधिकांश विद्यालयों को बच्चों को भोजन देने के लिए दुकानदारों से उधारी लेनी पड़ रही है। लगातार उधारी पर काम चलाना अब मुश्किल होता जा रहा है, जिससे कई स्कूलों में मिड डे मील ठप होने की स्थिति बन गई है।

नई कुकिंग कॉस्ट की दरें क्या हैं?

सरकार द्वारा एक मई 2025 से प्रभावी नई दरों के अनुसार:

  • प्राथमिक कक्षा (1 से 5): प्रति छात्र प्रतिदिन 6.78 रुपये तय किए गए हैं
    • इसमें 4.07 रुपये केंद्रांश और 2.71 रुपये राज्यांश शामिल हैं
  • अपर प्राइमरी कक्षा (6 से 8): प्रति छात्र प्रतिदिन 10.17 रुपये
    • इसमें 6.10 रुपये केंद्रांश और 4.07 रुपये राज्यांश शामिल हैं

इस बढ़ी हुई राशि से स्कूलों को दाल, तेल, हरी सब्जी, मसाला, सोयाबीन बरी, काबुली चना आदि सामग्रियां खरीदनी होती हैं, जिससे मेन्यू के अनुसार बच्चों को पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराया जा सके।

वास्तविकता: भुगतान न होने से कैसे जूझ रहे हैं शिक्षक?

मौजूदा वित्तीय वर्ष की शुरुआत को डेढ़ महीना हो गया है, लेकिन राज्य के हजारों स्कूलों को न तो पिछली शेष राशि मिली है और न ही नई दरों के अनुसार कोई अग्रिम भुगतान।

अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ के अनुसार, शिक्षक अपनी जेब से खर्च करके या दुकानों से उधार लेकर बच्चों को खाना खिला रहे हैं। कई स्थानों पर तो दुकानदारों ने और उधारी देने से मना कर दिया है। शिक्षक संघ का स्पष्ट कहना है कि यदि जल्द ही राशि की व्यवस्था नहीं हुई तो मिड डे मील योजना बाधित हो सकती है और उसकी जिम्मेदारी शिक्षकों की नहीं, बल्कि राज्य सरकार और शिक्षा विभाग की होगी।

क्या हैं इसके परिणाम?

  1. बच्चों के पोषण पर सीधा असर: गरीब और पिछड़े वर्ग के कई बच्चे स्कूल में मिलने वाले भोजन पर निर्भर रहते हैं। यदि मिड डे मील बंद होता है तो उनके पोषण स्तर पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
  2. शैक्षणिक माहौल प्रभावित: मिड डे मील बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रेरित करता है। इसके बंद होने से बच्चों की उपस्थिति और पढ़ाई दोनों प्रभावित हो सकती है।
  3. शिक्षकों पर आर्थिक और मानसिक दबाव: शिक्षकों का काम पढ़ाना है, लेकिन उन्हें रसोइया और व्यवस्थापक की भूमिका में झोंक दिया गया है।

सरकार से अपेक्षा क्या है?

  • अविलंब लंबित कुकिंग कॉस्ट राशि जारी की जाए
  • संशोधित दरों के अनुरूप अग्रिम भुगतान की व्यवस्था हो
  • भविष्य में भुगतान प्रक्रिया को पारदर्शी और समयबद्ध बनाया जाए
  • शिक्षकों को प्रशासनिक कार्यों से मुक्त रखा जाए

निष्कर्ष

झारखंड के सरकारी स्कूलों में मिड डे मील की स्थिति चिंताजनक है। कागजों में दरें भले बढ़ गई हों, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि जब तक फंड ट्रांसफर नहीं होता, तब तक कोई लाभ नहीं मिल सकता। यदि समय रहते सरकार ने उचित कदम नहीं उठाया, तो यह योजना बच्चों के अधिकार, शिक्षा और स्वास्थ्य तीनों पर प्रतिकूल असर डाल सकती है।

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